1. जब जुलूस की इजाज़त है तो अलग से नमाज़ की इजाज़त लेने की ज़रूरत नहीं और अगर इजाज़तका मसला है तो पिछले 2 सालों से इजाज़त मिलने के बाद इस बाद इजाज़त क्यों नही मिली?
2.अपने किसी की लाश
को कबरिस्तान ले जाना और कर्बला के शहीदों का ग़म मनाना बहुत अलग है क्योंकि कर्बला
में इस्लाम की रूह की हिफाज़त के लिए इमाम ने शहादत दी और उस इस्लाम का सबसे अहम्
रुक्म नमाज़ है इस लिए हमारे अज़ादारी के जूलूस में नमाज़ एक अहम् रुक्न होना चाहिए।
3.मस्जिद में नमाज़
पढ़ी जा सकती है अगर एक साथ इतने लोगों के पढ़ने का इंतज़ाम लेकिन एक साथ इतनी बड़ी
तादाद का किसी मस्जिद में जाना मुमकिन नही और उसके अलावा जूलूस में नमाज़ का होना
इमाम हुसैन के मक़सद को ज़माने के सामने लाना भी है क़ि ये असल नमाज़ ही है जिसके लिए
इमाम ने क़ुरबानी दी इस वजह से नमाज़ का जूलूस का हिस्सा होना बहुत अहम् है।
आज जब की दुनिया
शियों पर तोहमत लगाती है क़ि शिया नमाज़ नही पढ़ते; हमारे जूलूस दुश्मनो को इसका जवाब
देने का एक कामयाब तरीका हैं।
No comments:
Post a Comment